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Showing posts from January, 2022

गुलों में रंग भरे, बाद-ए-नौ-बहार चले

  गुलों में रंग भरे, बाद-ए-नौ-बहार चले चले भी आओ के गुलशन का कारोबार चले (गुल = फूल, गुलाब), (बाद-ए-नौ-बहार = नई बहार की हवा), (गुलशन = बग़ीचा) क़फ़स उदास है यारों, सबा से कुछ तो कहो कहीं तो बहर-ए-ख़ुदा आज ज़िक्र-ए-यार चले (क़फ़स = पिंजरा), (सबा = मंद हवा), (बहर-ए-ख़ुदा = ख़ुदा के लिए) बड़ा है दर्द का रिश्ता, ये दिल ग़रीब सही तुम्हारे नाम पे आयेंगे ग़मगुसार चले (ग़मगुसार = हमदर्द, दुःख बंटानेवाला) जो हमपे गुज़री सो गुज़री मगर शब-ए-हिज्राँ हमारे अश्क तेरी आक़बत सँवार चले (शब-ए-हिज्राँ = जुदाई की रात), (अश्क = आँसू),  (आक़बत = परलोक, भविष्य) मक़ाम 'फैज़' कोई राह में जँचा ही नहीं जो कू-ए-यार से निकले तो सू-ए-दार चले (मक़ाम = पड़ाव), (कू-ए-यार = प्रेमिका की गली), (सू-ए-दार = फाँसी के फंदे की ओर) -फैज़ अहमद फैज़
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