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Showing posts from December, 2019

जीव गेला तरी

जीव गेला तरी प्राण देऊ नये  आणि प्राणांसवें ..... मिलनाशा  गळे पान पान  जरी तुटे देठ  परंतु ती भेट..... न टळावी  ऐसें जी घडावें  एकदा मीलन  मिठीमध्यें प्राण ..... मावळेल  तेव्हा प्राणासवें  जा घेऊनी खूळ  ना तरी हा छळ ..... संपे कैवा   : शिरीष पै 

मिली हवाओं में उड़नें की वो सज़ा यारो

मिली हवाओं में उड़नें की वो सज़ा यारो कि मैं ज़मीन के रिश्तों से कट गया यारो वो बे - ख़याल मुसाफ़िर मैं रास्ता यारो कहाँ था बस में मेरे उस को रोकना यारो मिरे क़लम पे ज़माने की गर्द ऐसी थी कि अपने बारे में कुछ भी न लिख सका यारो तमाम शहर ही जिसकी तलाश में गुम था मैं उसके घर का पता किस से पूछता यारो जो बे - शुमार दिलों की नज़र में रहता था वो अपने बच्चों को इक घर न दे सका यारो जनाब - ए -' मीर ' की ख़ुद - गर्ज़ियो के सदक़े में मियाँ ' वसीम ' के कहने को क्या बचा यारो : वसीम बरेलवजी