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Showing posts from 2016

तेरे खुशबु मे बसे ख़त मैं जलाता कैसे,

तेरे खुशबु मे बसे ख़त मैं जलाता कैसे , प्यार मे डूबे हुए ख़त मैं जलाता कैसे , तेरे हाथों के लिखे ख़त मैं जलाता कैसे , जिनको दुनिया की निगाहों से छुपाये रखा , जिनको इक उम्र कलेजे से लगाए रखा , दीन जिनको जिन्हे ईमान बनाये रखा तेरे हाथों के लिखे ख़त मैं जलाता कैसे , जिनका हर लफ्ज़ मुझे याद था पानी की तरह , याद थे मुझको जो पैगाम - ऐ - जुबानी की तरह , मुझ को प्यारे थे जो अनमोल निशानी की तरह , तेरे हाथों के लिखे ख़त मैं जलाता कैसे , तूने दुनिया की निगाहों से जो बचाकर लिखे , सालाहा - साल मेरे नाम बराबर लिखे , कभी दिन में तो कभी रात में उठकर लिखे , तेरे खुशबु मे बसे ख़त मैं जलाता कैसे , प्यार मे डूबे हुए ख़त मैं जलाता कैसे , तेरे हाथों के लिखे ख़त मैं जलाता कैसे , तेरे ख़त आज मैं गंगा में बहा आया हूँ , आग बहते हुए पानी में लगा आया हूँ : Rajinder Nath (Rehbar)

मैं नशे में हूँ...

ठुकराओ या अब के प्यार करो मैं नशे में हूँ जो चाहो मेरे यार करो मैं नशे में हूँ अब भी दिला रहा हूँ यकीन - ऐ - वफ़ा मगर मेरा ना एतबार करो मैं नशे में हूँ ... गिरने दो तुम मुझे , मेरा साग़र संभाल लो इतना तो मेरे यार करो मैं नशे में हूँ ... मुझको कदम - कदम पे भटकने दो वाइज़ों तुम अपना कारोबार करो मैं नशे में हूँ ... फ़िर बेखुदी में हद से गुज़रने लगा हूँ मैं इतना ना मुझसे प्यार करो मैं नशे में हूँ ... : शहीद कबीर

रान ओले चिंब ओले

रान ओले  चिंब ओले  तुझ्या कातीव लेण्याला  वस्त्र लाघट लाखले  नभ ओले  चिंब ओले  ऊनसाउलीचे जाळे  तुझ्या डोळ्यांत गुंतले  रान ओले  पीक झुले  तुझ्या अंधारबनात  वारे झिंगून गेलेले  रान ओले  चिंब ओले ....  : रान ओले चिंब ओले  : रानातल्या कविता  : ना. धों . महानोर 

Punjabi Tappe

Kothe te aa mahiya, Milna taa millege, Nai to khasmaa nu kha mahiya, Ke leyna hai mitra to, Milne to aa jawa, Daar lagta hai chiitra to, Tusi kale kale ho, Kuch tee sharam karo, Dhiya putra wale ho, Aye sare dand paye kade ne, Asi taanu chunge lagde, Te sade dhiya put wadhde ne, Ithe pyaar di puch koi na, Tere nail nayui boolna, Tere muh te much koi na, Maja pyaar da chak langa, Je tera hukm hoye, Meh to dadi wi rakh langa Bage which aaya kaaro, Jado usii so jayye, Tusi makhiya udaya karo, Tusi rooj nahaya kaaro, Makhiya to darde ho, Gud thoda khaya karo Eet pyaar di pawage, Hum asi mil gaye ha, Geet pyaar de gawa ge

आहिस्ता आहिस्ता

सरकती जाये है रुख से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता निकलता आ रहा है आफ़ताब आहिस्ता आहिस्ता जवां होने लगे जब वो तो हमसे कर लिया परदा हया यकलख़्त आई और शबाब आहिस्ता आहिस्ता सवाल \- ए \- वसल पे उनको उदू का खौफ़ है इतना दबे होंठों से देते हैं जवाब आहिस्ता आहिस्ता हमारे और तुम्हारे प्यार में बस फ़र्क है इतना इधर तो जल्दी \- जल्दी है उधर आहिस्ता आहिस्ता शब - ए - फ़ुर्क़त का जागा हूँ फ़रिश्तो अब तो सोने दो कभी फ़ुर्सत में कर लेना हिसाब आहिस्ता आहिस्ता वो बेदर्दी से सर काटें अमीर और मैं कहूँ उनसे हुज़ूर आहिस्ता आहिस्ता जनाब आहिस्ता आहिस्ता :आमिर मिनाई 

दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई

दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई जैसे एहसान उतारता है कोई दिलमे कुछ ऐसें संभालता हुं गम  जैसे जेवर संभालता हैं कोई  आईना देख के तसल्ली हुई हम को इस घर में जानता है कोई पक गया है शजर पे फल शायद फिर से पत्थर उछालता है कोई फिर नजर में लहू के छींटे हैं तुम को शायद मुघालता है कोई देर से गूँजतें हैं सन्नाटे जैसे हम को पुकारता है कोई ।

न कुर्बतों में

न कुर्बतों में सुकून है न फासलों में करार है ना वस्ल में मज़ा है न हिज़्र में वो सज़ा है मैं कहूँ जान की आफत तुम कहते हो कि प्यार है

रानात रानात जांभूळबनात

रानात रानात  जांभूळबनात  झडली श्रावणगाणी  गंधल्या मातीत  पुनव उजट  अंकुरे लाख वितांनी  नागड्या झाडांना  लखडे पालवी  स्वप्निल , हाऊन धुंद  पांगल्या नभात  दाटली दर्वळ  ओठात रुतले छंद  सांजल्या मनात  जाणीव जागली  लेऊन मोत्याचा तुरा  क्षितीजवाटेत  सांडल्या चांदण्या  होऊन सोनफुलोरा ! : रानात रानात जांभूळबनात  : रानातल्या कविता  : ना. धों.  महानोर 

प्यार

प्यार कभी एकतरफा होता है न होगा  कहा था मैंने  दो रूहों की एक मिलन की जुड़वां पैदाइश है यह  प्यार अकेला जी नहीं सकता  जीता है तो दो लोगों में  मरता है तो दो मरते हैं  प्यार एक बहता दरिया है  झील नहीं की जिसको किनारे बाँध के बैठे रहते हैं  सागर भी नहीं की जिसका किनारा होता नहीं  बस दरिया है और बहता है  दरिया जैसे चढ़ जाता है , ढल जाता है  चढ़ना ढालना प्यार में वो सब होता है  पानी की आदत है ऊपर से नीचे की जानिब बहना  नीचे से फिर भागती सूरत ऊपर उठाना  बादल बन आकाश में बहना  कांपने लगता है जब तेज़ हवाएं छेड़ें बूँद बूँद बरस जाता है  प्यार एक जिस्म के साज़ पे बहती गुंज नहीं है  न मंदिर की आरती है न पूजा है  प्यार नफा है न लालच है  न लाभ न हानि कोई  प्यार ऐलान है अहसान है न कोई जंग की जीत है यह  न ही हुनर है न ही इनाम न रिवाज़ न रीत है यह  यह रहम नहीं यह दान नहीं  यह बीज नहीं जो बीज सके  खुशबू है मगर यह खुशबू की पहचान नहीं  दर्द दिलासे शक विश्वास जूनून और होश -ओ -हवास की एक अहसास के कोख से  पैदा हुआ है  एक रिश्ता है यह  यह सम्बन्ध है - दो जानो का दो रूहों का पहचानों का  पैदा होता है बढ़ता

शून्य

कमी अनेकाहूनि मजपाशी       यात मनाला खेद  कित्येकाहुनी अधिक असे पण       मनास याचा मोद  या मोदाचा त्या खेदाशी       होतो भागाकार  संभावित मज समाधान हे       मिळते शून्याकार ! : शून्य   : हिमरेषा  : कुसुमाग्रज 

गुलाब

जन म्हणती की - काट्यावाचून  गुलाब नाही     दिसावयाचा - एकही काटा या कुसुमाला     कोठे नाही  दलादलांतुनि दहिवर केवळ     साठूनि राही - म्हणून म्हणतो - अश्रुवाचून  गुलाब नाही     असावयाचा.  : गुलाब  : हिमरेषा  : कुसुमाग्रज 

आशंका

आषाढाची आठवण       अश्विनाला उरेल का ? निलातील मेघयात्रा       निरभ्राला स्मरेल का ? पर्जन्यात हारपली       नक्षत्रांच्या संगे रात  तिची व्यथा हंसपंखी       चांदण्यात कळेल का ? तिन्ही सांजा धुक्यावर       लिहिलेले दवगीत  त्याचा स्वर प्रकाशाच्या       गर्जनेशी मिळेल का ? : आशंका  : हिमरेषा  : कुसुमाग्रज 

वरदान

या प्रेमाला दूरपणाचे     कायमचे वरदान असे  समीपतेचा काच न याला     मलीनतेचा शाप नसे     इथे न केव्हा तुफान उठते       धुसमुसणारे     धुके न पडते अथवा जीवन       आकसणारे  हलके हलके रक्त पिणारा     विद्ध इथे अभिमान नसे  प्रेम असे पण त्या प्रेमासह     जहराचे अनुपान नसे.  : वरदान  : हिमरेषा  : कुसुमाग्रज 

जागा

पुन्हा पुन्हा बघ तुला सांगतो  पीटामध्ये मी आहे बसलो  तयार तेथे बसावया तू ? म्हणशिल ना तर आम्ही फसलो ! : जागा  : हिमरेषा  : कुसुमाग्रज 

कोसा कोसा लगता है

कोसा कोसा लगता है  तेरा भरोसा लगता है  रातने अपनी थालीमें  चांद परोसा लगता है  गमसे इतना उन्स हुआ  पाला पोसा लगता है  गालपे आसू हाथ तेरा  ओठंपे बोसा लगता है  ... तेरा भरोसा लगता है  : गुलज़ार 

देणगी

तुझ्या सावलीत  विसावला जीव  उमले राजीव      चांदण्यात  युगायुगांची रे  मावळे झाकळ  हृदयी उजळ      काही भासे  आकाशाची फुले  शृंगारात रात  आली अंधारात      माझ्याकडे  अंतरीचे गूढ  उकलले धागे  जीवित हो जागे      थरारोनी  धुक्यातून नादे  पैंजणाचा रव  स्वप्नाशांचा नव      जमे मेळा  तुझ्या स्पर्शे झाले  गंजलेले क्षण  सुवर्णाचे  कण      जादूगारा ! पाखरांच्या परी  गीत आलापीत  गेले झंकारीत      जीवनास ! जीवनच सारे  मुखरीत झाले  अणुरेणू न्हाले      संगीतात ! आणि आज पुन्हां  अज्ञातात जाशी  उरे माझ्यापाशी      देणगी ही  तर्जनी हो दूर  तरी वीणेवर  राहतील स्वर     रेंगाळत ! : देणगी  : किनारा  : कुसुमाग्रज 

शून्य शृंगारते

आतां सरी वळवाच्या ओसरू लागल्या , भरे निळी  नवलाई जळीं निवळल्या . गंधगर्भ भुईपोटी ठेवोन वाळली भुईचंपकाची पाने कर्दळीच्या तळी . कुठे हिरव्यांत फुले पिवळा रुसवा , गगनास मेघांचा हा पांढरा विसावा . आतां रात काजव्यांची माळावर झुरे , भोळी निर्झरी मधेंच बरळत झरे . धुके फेसाळ पांढरे दर्वळून दंवे शून्य शृंगारते आतां होत हळदिवें . : जोगवा : आरती प्रभू

घडी

ओथंबून आलेले पावसाळी आभाळ , घननीळ सावल्यांनी धुंदावलेला माळ, काहूरभरला व्याकुळ वारा  मनोमनीच्या छेडतो तारा , उलगडते जवळची आभाळी शाल , काठावर केवळ मनस्वी फुलमाळ ...  डोळ्यांतले सारें मानेवर टिपते , घडी घालून बाजूला ठेवते .  : घडी  : चित्कळा  : इंदिरा संत 

किताबें झाँकती हैं बंद आलमारी के शीशों से

किताबें झाँकती हैं बंद आलमारी के शीशों से  बड़ी हसरत से तकती हैं महीनों अब मुलाकातें नहीं होती जो शामें उनकी सोहबत में कटा करती थीं अब अक्सर गुज़र जाती है कम्प्यूटर के पर्दों पर बड़ी बेचैन रहती हैं क़िताबें उन्हें अब नींद में चलने की आदत हो गई है जो कदरें वो सुनाती थी कि जिनके  जो रिश्ते वो सुनाती थी वो सारे उधरे-उधरे हैं कोई सफा पलटता हूँ तो इक सिसकी निकलती है कई लफ्ज़ों के मानी गिर पड़े हैं बिना पत्तों के सूखे टुंड लगते हैं वो अल्फ़ाज़ जिनपर अब कोई मानी नहीं उगते जबां पर जो ज़ायका आता था जो सफ़ा पलटने का अब ऊँगली क्लिक करने से बस झपकी गुजरती है किताबों से जो ज़ाती राब्ता था, वो कट गया है कभी सीने पर रखकर लेट जाते थे कभी गोदी में लेते थे कभी घुटनों को अपने रिहल की सूरत बनाकर नीम सजदे में पढ़ा करते थे, छूते थे जबीं से वो सारा इल्म तो मिलता रहेगा आइंदा भी मगर वो जो किताबों में मिला करते थे सूखे फूल और महके हुए रुक्के किताबें मँगाने, गिरने उठाने के बहाने रिश्ते बनते थे उनका क्या होगा वो शायद अब नही होंगे!!

प्राजक्त

सडा घातला अंगणी , वर रेखिले प्राजक्त , उगवत्या नारायणा जोडिले मी दोन्ही हात .  दोन्ही हातांची ओंजळ भक्तीभावे पुढे केली , काय प्राजक्तफुलांनी शिगोशीग ओसंडली ? काही सुचेना , कळेना .... गेले अवघी मिटून , आली फुले ही कोठून ? तन, मन प्रश्नचिन्ह.  मनामनाच्या पल्याड , प्रश्नचिन्हाच्या शून्यात , बाई , तिथे देखिले मी एक देखिले अद्भुत .  एक कोरलेले लेणें , एक मनस्वी प्राजक्त , एक जुळली ओंजळ आग्रहाच्या वळणांत .  तोच काय हा प्राजक्त स्वर्णरंगी मित्र होतो , शुभ्र , केशरी रंगांनी , माझी ओंजळ भरतो .  : प्राजक्त  : चित्कळा  : इंदिरा संत 

ऊनओल्या

ऊनओल्या गुजगप्पा, ऊनओला अन अबोला, ऊनओली ती उन्हें अन ऊनओला तो पावसाळा.  मंद झोपाळे हलावे , ऊन पायी चिकणमाती , उंचसे झोके चढावे , किरण गावें हातीं ओला.  सर्व देते ... आणि येतें श्रांत डोळां मीठपाणी , सर्व घेतो म्हणत 'राणी ' : पेट घे कापूर ओला  सर्व देता येत होते आणि देता येत नव्हते , ती असोशी दाट ओली , पावसाळी तो उन्हाळा .  स्पर्श काळोखास करणे जीवघेणे वाटलेले  एक ओलासा उसासा तापल्या कानांत आला  दिवस आले , दिवस गेले, संपले काही ऋतू अन  संपला काळोख नाही ऊनओला जांभळा  श्रावणाच्या अन उन्हाची झुंबरे मी लावलेली  आणि आषाढी सरींची तोरणे माझ्या घराला.  : ऊनओल्या  : नक्षत्रांचे देणे  : आरती प्रभू 

तो प्रवास सुंदर होता

आकाशतळी फुललेली मातीतिल एक कहाणी क्षण मावळतीचा येता डोळ्यांत कशाला पाणी ? तो प्रवास सुंदर होता आधार गतीला धरती तेजोमय नक्षत्रांचे आश्वासन माथ्यावरती सुख आम्रासम मोहरले भवताल सुगंधित झाले नि:शब्द वेदनांमधुनी गीतांचे गेंद उदेले पथ कुसुमित होते काही रिमझिमत चांदणे होते वणव्याच्या ओटीवरती केधवा नांदणे होते :  कुसुमाग्रज 

चाफा

रंगीत फुलांचा गंध झरे घन मंद माझिया हातीं डोळ्यात चंद्र चंद्रात मंद्र ; चांदणे हरवले भवती काळीज उमलती शीळ जळे घननीळ कुण्या स्मरणाशी पाणीच असे व्याकूळ पिसे ; वाहते गडे चरणाशी … : चंद्रमाधवीचे प्रदेश : ग्रेस