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Showing posts from August, 2011

वो कटी फटी हुई पत्तियां

वो कटी फटी हुई पत्तियां, और दाग़ हल्का हरा हरा! वो रखा हुआ था किताब में, मुझे याद है वो ज़रा ज़रा| मुझे शौक़ था के मिलूं तुझे, मुझे खौफ़ भी था कहूंगा क्या! तेरे सामने से निकल गया, बडा सहमा सहमा डरा डरा| बडा दोगला है ये शख्स भी, कोइ ऐतबार करे तो क्या ना तो झूठ बोले कवि कभी, ना कभी कहे वो खरा खरा| गुलजार

तुझे पहचानूंगा कैसे?

तुझे पहचानूंगा कैसे? तुझे देखा ही नहीं ढूँढा करता हूं तुम्हें अपने चेहरे में ही कहीं लोग कहते हैं मेरी आँखें, मेरी माँ सी हैं यूं तो लबरेज़ हैं पानी से, मगर प्यासी हैं जाने किस जल्दी में थी जन्म दिया, दौड़ गयी क्या खुदा देख लिया था कि मुझे छोड़ गयी तुझे पहचानूंगा कैसे? तुझे देखा ही नहीं
disawar satta king