Skip to main content

माँ

 





मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू

मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना

लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती

अब भी चलती है जब आँधी कभी ग़म की ‘राना’
माँ की ममता मुझे बाहों में छुपा लेती है

मुसीबत के दिनों में हमेशा साथ रहती है
पयम्बर क्या परेशानी में उम्मत छोड़ सकता है

जब तक रहा हूँ धूप में चादर बना रहा
मैं अपनी माँ का आखिरी ज़ेवर बना रहा

किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई
मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई

ऐ अँधेरे! देख ले मुँह तेरा काला हो गया
माँ ने आँखें खोल दीं घर में उजाला हो गया

इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है

मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँ
माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ

हादसों की गर्द से ख़ुद को बचाने के लिए
माँ ! हम अपने साथ बस तेरी दुआ ले जायेंगे

ख़ुद को इस भीड़ में तन्हा नहीं होने देंगे
माँ तुझे हम अभी बूढ़ा नहीं होने देंगे

जब भी देखा मेरे किरदार पे धब्बा कोई
देर तक बैठ के तन्हाई में रोया कोई

यहीं रहूँगा कहीं उम्र भर न जाउँगा
ज़मीन माँ है इसे छोड़ कर न जाऊँगा

अभी ज़िन्दा है माँ मेरी मुझे कु्छ भी नहीं होगा
मैं जब घर से निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है

कुछ नहीं होगा तो आँचल में छुपा लेगी मुझे
माँ कभी सर पे खुली छत नहीं रहने देगी

दिन भर की मशक़्क़त से बदन चूर है लेकिन
माँ ने मुझे देखा तो थकन भूल गई है

दुआएँ माँ की पहुँचाने को मीलों मील जाती हैं
कि जब परदेस जाने के लिए बेटा निकलता है

दिया है माँ ने मुझे दूध भी वज़ू करके
महाज़े-जंग से मैं लौट कर न जाऊँगा

बहन का प्यार माँ की ममता दो चीखती आँखें
यही तोहफ़े थे वो जिनको मैं अक्सर याद करता था

बरबाद कर दिया हमें परदेस ने मगर
माँ सबसे कह रही है कि बेटा मज़े में है

खाने की चीज़ें माँ ने जो भेजी हैं गाँव से
बासी भी हो गई हैं तो लज़्ज़त वही रही

मुक़द्दस मुस्कुराहट माँ के होंठों पर लरज़ती है
किसी बच्चे का जब पहला सिपारा ख़त्म होता है

मैंने कल शब चाहतों की सब किताबें फाड़ दीं
सिर्फ़ इक काग़ज़ पे लिक्खा लफ़्ज़—ए—माँ रहने दिया

माँ के आगे यूँ कभी खुल कर नहीं रोना
जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती

मुझे कढ़े हुए तकिये की क्या ज़रूरत है
किसी का हाथ अभी मेरे सर के नीचे है

बुज़ुर्गों का मेरे दिल से अभी तक डर नहीं जाता
कि जब तक जागती रहती है माँ मैं घर नहीं जाता

अब भी रौशन हैं तेरी याद से घर के कमरे
रौशनी देता है अब तक तेरा साया मुझको

मेरे चेहरे पे ममता की फ़रावानी चमकती है
मैं बूढ़ा हो रहा हूँ फिर भी पेशानी चमकती है

आँखों से माँगने लगे पानी वज़ू का हम
काग़ज़ पे जब भी देख लिया माँ लिखा हुआ

ये ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता,
मैं जब तक घर न लौटूं, मेरी माँ सज़दे में रहती है

चलती फिरती आँखों से अज़ाँ देखी है
मैंने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखि है

: मुन्नवर राणा

Comments

Popular posts from this blog

भंगु दे काठिन्य माझे

भंगु दे काठिन्य माझे आम्ल जाऊं दे मनींचे; येऊ दे वाणीत माझ्या सूर तूझ्या आवडीचे. ज्ञात हेतूतील माझ्या दे गळू मालिन्य,आणि माझिया अज्ञात टाकी स्फूर्ति-केंद्री त्वद्‌बियाणे. राहु दे स्वातंत्र्य माझे फक्त उच्चारातले गा; अक्षरा आकार तूझ्या फुफ़्फ़ुसांचा वाहु दे गा. लोभ जीभेचा जळू दे दे थिजु विद्वेष सारा द्रौपदीचे सत्व माझ्या लाभु दे भाषा शरीरा. जाऊ दे कार्पण्य ’मी’चे दे धरू सर्वांस पोटी; भावनेला येऊ दे गा शास्त्रकाट्य़ाची कसोटी. खांब दे ईर्ष्येस माझ्या बाळगू तूझ्या तपाचे; नेउं दे तीतून माते शब्द तूझा स्पंदनाचे त्वसृतीचे ओळखू दे माझिया हाता सुकाणू; थोर यत्ना शांति दे गा माझिया वृत्तीत बाणू. आण तूझ्या लालसेची; आण लोकांची अभागी; आणि माझ्या डोळियांची पापणी ठेवीन जागी. धैर्य दे अन्‌ नम्रता दे पाहण्या जे जे पहाणे वाकुं दे बुद्धीस माझ्या तप्त पोलादाप्रमाणे; घेऊ दे आघात तीते इंद्रियद्वारा जगाचे; पोळू दे आतून तीते गा अतींद्रियार्थांचे आशयाचा तूच स्वामी शब्दवाही मी भिकारी; मागण्याला अंत नाही; आणि देणारा मुरारी. काय मागावे परी म्यां तूहि कैसे काय द्यावे; तूच देणारा जिथे अन्‌ तूंच घे

असे जगावे छाताडावर आव्हानाचे लावुन अत्तर

असे जगावे छाताडावर आव्हानाचे लावुन अत्तर नजर रोखुनी नजरे मध्ये आयुष्याला द्यावे उत्तर नको गुलामी नक्षत्रांची भीती आंधळी ताऱ्यांची आयुष्याला भिडतानाही चैन करावी स्वप्नांची असे दांडगी ईछा ज्याची मार्ग तयाला मिळती सत्तर नजर रोखुनी नजरे मध्ये आयुष्याला द्यावे उत्तर पाय असावे जमिनीवरती   कवेत अंबर घेताना हसू असावे ओठांवरती काळीज काढुन देताना संकटासही ठणकावुन सांगावे आता ये बेहत्तर नजर रोखुनी नजरे मध्ये आयुष्याला द्यावे उत्तर करुन जावे असेही काही दुनियेतुनी या जाताना गहिवर यावा जगास सा - या निरोप शेवट देताना स्वर कठोर त्या काळाचाही क्षणभर व्हावा कातर कातर नजर रोखुनी नजरे मध्ये आयुष्याला द्यावे उत्तर _ गुरु ठाकूर

शब्द

घासावा शब्द । तासावा शब्द  । तोलावा शब्द । बोलण्यापूर्वी  ।। शब्द हेचि कातर । शब्द सुईदोरा । बेतावेत शब्द  । शास्त्राधारे ।। बोलावे नेमके ।  नेमके , खमंग खमके । ठेवावे भान । देश , काळ, पात्राचे ।। बोलावे बरे । बोलावे खरे । कोणाच्याही मनावर । पाडू नये चरे ।। कोणाचेही वर्म । व्यंग आणि बिंग । जातपात धर्म । काढूच नये ।। थोडक्यात समजणे । थोडक्यात समजावणे । मुद्देसूद बोलणे । हि संवाद  कला ।। शब्दांमध्ये झळकावी । ज्ञान, कर्म , भक्ती । स्वानुभावातून जन्मावा । प्रत्येक शब्द ।। शब्दांमुळे दंगल । शब्दांमुळे मंगल । शब्दांचे हे जंगल । जागृत राहावं ।। जीभेवरी ताबा । सर्वसूखदाता । पाणी , वाणी , नाणी । नासू  नये ।। : संत तुकाराम